सॉफ्टवेयर इंजीनियर क्या है? और कैसे बने? काम, प्रकार, सैलरी

जब भी बात अब इंजीनियर बनने की आती है तब सबसे पहला ख्याल जो अब दिमाग में आता है की सॉफ्टवेयर इंजीनियर क्या होता है? और एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर कैसे बना जाता है? सॉफ्टवेयर इंजीनियर बनने के बाद सैलरी या कहें तन्खवाह कितनी होती है और इसमें किस तरह के कामों को करना पड़ता है? साथ ही सॉफ्टवेयर इंजीनियर बनने के क्या फायदे हैं? और इसके क्या नुकसान हैं? ऐसे कई अनगिनत सवाल आपके मन में आते होंगे। इन सभी सवालों के जवाब आपको इस लेख के माध्यम से मिल जाएंगे।

इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के कहीं भी दाखिला लेने से पहले आजकल युवा सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग में पढ़ाई देने पर ज़्यादा जोर इसलिए देते हैं क्यूंकि इसमें नौकरी आसानी से मिल जाती है और इसमें करियर को लेकर भविष्य काफी सुनहरे होते हैं। यही सारी चीज़ें एक युवा को सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग में पढ़ाई करने के लिए ज़्यादा आकर्षित करता है।

सॉफ्टवेयर इंजीनियर क्या है?

आसान भाषा में अगर बात करें तब सॉफ्टवेयर इंजीनियर वैसे पेशेवर लोग को कहते हैं जो ग्राहकों की जरूरत का विश्लेषण करता है, और फिर उसके जरूरतों के अनुसार ही उसके लिए सॉफ्टवेयर का निर्माण करता है और फिर उसकी टेस्टिंग करने के पश्चात उसे ग्राहक या उपयोगकर्ता को सोंप देता है।

सॉफ्टवेयर इंजीनियर क्या है और कैसे बने काम, प्रकार, सैलरी
सॉफ्टवेयर इंजीनियर क्या है और कैसे बने काम, प्रकार, सैलरी

सॉफ्टवेयर इंजीनियर को क्या काम करने पड़ते हैं?

जब भी आप अपने स्मार्टफोन या अपने कंप्यूटर पर किसी सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल करते हो या फिर इंटरनेट पर किसी वेबपेज या वेबसाइट [पर जाते हो तब यह सॉफ्टवेयर इंजीनियर द्वारा किये कामों का ही अंतिम स्वरुप होता है। इसके अलावा सॉफ्टवेयर इंजीनियर द्वारा कई सारे और अहम् काम किये जाते हैं और वह कुछ इस प्रकार है:

  • उपयोगकर्ता के जरूरत के अनुरूप कोड लिखना।
  • कोड को डिबग करना।
  • सॉफ्टवेयर को लांच करने से पहले उसे हर एक परिस्तिथि समझते हुए टेस्ट करना।
  • डाटा को इक्कट्ठा कर उससे सही जानकारी लेना। जैसे कई सारे काम है जो एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर करता है।

सॉफ्टवेयर इंजीनियर कैसे बने?

सॉफ्टवेयर इंजीनियर के रूप में काम करने के दो चरण है और यह आप पर निर्भर करता है की आप किस तरह से इस क्षेत्र में काम करना चाहते हो? भारत में सॉफ्टवेयर इंजीनियर की पढ़ाई दो तरीकों से की जाती है पहला सॉफ्टवेयर इंजीनियर में डिप्लोमा और दूसरा सॉफ्टवेयर इंजीनियर में बैचलर डिग्री। इन दोनों के बारे निचे आपको पूर्ण जानकारी मिलेगी।

सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग में डिप्लोमा कैसे करें?

भारत में सॉफ्टवेयर इंजीनियर में डिप्लोमा करने का मौका आपको कक्षा दसवीं की पढ़ाई पूरी करने के बाद ही मिल जाती है। इसके लिए आपको दसवीं की पढ़ाई के दौरान डिप्लोमा में प्रवेश परीक्षा की तैयारी करनी पड़ती है। क्यूंकि प्राइवेट संस्थान में तो आपको आसानी से दाखिला मिल जाता है लेकिन की नौकरी को लेकर आगे समस्याएं आती है। इसलिए हमारा यही सुझाव रहेगा की दसवीं की पढ़ाई के साथ ही आप डिप्लोमा के प्रवेश परीक्षा की भी तैयारी साथ में करें।

प्रवेश परीक्षा में दाखिला मिल जाने के बाद किसी सरकारी पॉलीटेक्निक कॉलेज के माध्यम से तीन साल में आपको सॉफ्टवेयर इंजीनियर में डिप्लोमा की डिग्री मिल जाएगी और उसके बाद आप एक जूनियर सॉफ्टवेयर इंजीनियर के रूप में इस क्षेत्र में अपना योगदान दे सकते हैं।

सॉफ्टवेयर इंजीनियर में बैचलर डिग्री कैसे लें?

सॉफ्टवेयर इंजीनियर में बैचलर डिग्री लेने के लिए आपको अपनी कक्षा 12वीं की पढ़ाई विज्ञान विषय को लेकर करनी पड़ेगी जिसमे भौतिकी, रसायन विज्ञान और गणित आपका मुख्य विषय रहेगा। इसी दौरान अगर आप बैचलर डिग्री किसी सरकारी संस्थान में पढ़ाई करके लेना चाहते हो तब आपको अपने 11वीं और 12वीं की परीक्षा के साथ ही IIT-JEE या फिर आपके राज्य में आयोजित होने वाली इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा की तैयारी करनी पड़ेगी।

प्रवेश परीक्षा में सफल होने के पश्चात 4 साल की कड़ी पढ़ाई के बाद आपको सॉफ्टवेयर इंजीनियर की डिग्री मिलती किसी सरकारी या गैर-सरकारी संस्थान में नौकरी करते हुए आप एक क्षेत्र में एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर के रूप में अपना योगदान दे सकते हो।

सॉफ्टवेयर इंजीनियर के प्रकार

सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग काफी ज़्यादा विशाल क्षेत्र है। फिर भी इसे आसानी से समझने के लिए इसे दो भागों में बांटा गया है, पहला एप्लीकेशन सॉफ्टवेयर डेवलपर और दूसरा सिस्टम सॉफ्टवेयर डेवलपर

एप्लीकेशन सॉफ्टवेयर डेवलपर

एप्लीकेशन सॉफ्टवेयर डेवलपर के काम कुछ इस प्रकार हैं:

  • ये ग्राहकों और उपयोगकर्ता की जरूयतों का ख्याल रखते हैं।
  • वैसे सॉफ्टवेयर का निर्माण करते हैं, जिसे उपयोगकर्ता फ्रंट एन्ड में आसानी से इस्तेमाल कर सके।
  • एंड्राइड, Windows, iOS और Linux जैसे ऑपरेटिंग सिस्टम के लिए सॉफ्टवेयर बनाते हैं।
  • जरूरतों का विश्लेषण करते हैं।
  • समय-समय पर सॉफ्टवेयर को अपडेट करते रहते हैं।
  • फ्रंट एन्ड और बैक एन्ड दोनों पर ये काम करते हैं।
  • इनके काम में इनका साथ देते हैं ग्राफ़िक डिज़ाइनर, प्रोजेक्ट मैनेजर, मार्किट एनालिस्ट इत्यादि।

सिस्टम सॉफ्टवेयर डेवलपर

  • ऑपरेटिंग सिस्टम बनाते हैं।
  • एप्लीकेशन सॉफ्टवेयर को सपोर्ट देने के लिए सिस्टम सॉफ्टवेयर को अपडेट करते हैं।
  • सॉफ्टवेयर के जरिये हार्डवेयर की जरूरतों को पूरी करते हैं।
  • विभिन्न प्रकार के एप्लीकेशन सॉफ्टवेयर को एक जगह चलने के लिए सिस्टम सॉफ्टवेयर को डेवेलोप करते हैं।
  • IT मानकों को ध्यान में रखते हुए ये लोग काम करते हैं।
  • अपने सॉफ्टवेयर के दस्तावेज़ को तैयार करवाते हैं और नयी-नयी तकनीक पर काम करने पर ये बल देते हैं।
  • ज़्यादातर इनका काम बैकेंड से जुड़ा होता है।
  • इन्हे अपने काम को करने के लिए डाटा साइंटिस्ट, सीनियर सिस्टम आर्टिक्टेक्ट, डेवेलपर्स की पूरी टीम और सीनियर मैनेजमेंट की आवश्यकता पड़ती है।

सॉफ्टवेयर इंजीनियर की सैलरी या तनख्वाह

भारत में एक औसत सॉफ्टवेयर इंजीनियर की गैर-सरकारी संस्थान में सैलरी या कहें तनख्वाह औसतन 5 लाख की होती है। अगर आपने अपनी पढ़ाई किसी अच्छे सरकारी संस्थान जैसे IIT या फिर NIT से की है तब औसतन तनख्वाह लगभग 8 से 9 लाख की हो। इसके अलावा अगर आपको अपने विषय और कार्यक्षेत्र में अधिक आत्मविश्वास और अनुभव है तब आपको Microsoft और Google जैसे दिग्गज IT संस्थान 50 लाख प्रतिवर्ष से भी अधिक की तनख्वाह दे सकते हैं। यह पूरी तरह से छात्र पर निर्भर करता है की उसकी रूचि और उसकी समझ इस क्षेत्र में कितनी है।

अंतिम शब्द

इस लेख के माध्यम से आपने जाना की सॉफ्टवेयर इंजीनियर क्या है? और कैसे बने? साथ ही आपने जाना की इन्हे क्या काम करने पड़ते हैं तथा इसके प्रकार को भी आपने जाना और अंत में आपने जाना की इनकी सैलरी अर्थात तनख्वाह कितनी होती है। इस लेख से सम्बंधित किसी तरह की कोई सवाल, शिकायत या सुझाव आपके मन में हो तब निचे कमेंट करके हमें अवश्य बतलायें, धन्यवाद।

इसे भी पढ़ें:

Leave a Comment